Bettiah Catholic Church History: बेतिया के कैथोलिक चर्च की कहानी जानिए, 250 वर्षों से चंपारण की विरासत

By: Apna Bettiah

On: July 8, 2025

Bettiah Catholic Church History

Bettiah Catholic Church History: पश्चिम चंपारण जिले में बेतिया का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शहर है। बेतिया के धार्मिक स्थलों में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण और दर्शनीय स्थल है रोमन कैथोलिक चर्च, जो न सिर्फ बेतिया के ईसाई समुदाय के लिए आस्था का केंद्र है, बल्कि शहर की ऐतिहासिक विरासत और सांस्कृतिक विविधता को भी दर्शाता है।

भारत के सबसे प्राचीन बेतिया कैथोलिक समुदाय का गौरवशाली इतिहास

चंपारण की पवित्र भूमि सिर्फ गांधीजी के सत्याग्रह के लिए ही नहीं जानी जाती, बल्कि यहां भारत के सबसे पुराने ईसाई समुदायों में से एक बेतिया मसीही समुदाय की भी ऐतिहासिक उपस्थिति रही है। इस समुदाय की जड़ें 18वीं शताब्दी की शुरुआत में रोमन कैथोलिक चर्च की कैपुचिन शाखा से जुड़ी हुई हैं, जिसका मिशन तिब्बत और नेपाल होते हुए बेतिया पहुंचा।

लहासा से बेतिया तक का सफर

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कैपुचिन मिशन की शुरुआत तिब्बत के लहासा में हुई थी। लेकिन वहाँ उत्पीड़न के कारण इन मिशनरियों को नेपाल में शरण लेनी पड़ी। वहीं से इटालियन कैपुचिन पादरी फादर जोसेफ मैरी को भारत भेजा गया। उन्होंने 1740 में पटना में सेवा शुरू की, कहा जाता है कि महाराज की पत्नी किसी गंभीर गले की बीमारी से पीड़ित थीं, और फादर जोसेफ मैरी ने उन्हें सफल इलाज से ठीक कर दिया। इस घटना ने राजा का विश्वास जीत लिया और उन्होंने आग्रह किया कि फादर बेतिया में ही रहें। परंतु बिना रोम से औपचारिक अनुमति के, उन्होंने रुकने से इनकार कर दिया।

बेतिया में मिशन की स्थापना

सन् 1745 में, 7 दिसंबर की तारीख को, फादर जोसेफ मैरी बेतिया पहुँचे। राजा धुरुप सिंह ने उन्हें एक सुंदर बग़ीचे के साथ एक घर दिया, जो महल के पास था। उन्हें उपदेश देने, प्रार्थना करने और धर्म प्रचार की पूरी स्वतंत्रता दी गई। फादर ने यह कार्य 1761 में अपनी मृत्यु तक जारी रखा। वे बेतिया में ईसाई समुदाय की नींव रखने वाले पहले व्यक्ति बने। यह समय वही था जब तिब्बत के लहासा में स्थित कैपुचिन मिशन तिब्बती अधिकारियों के उत्पीड़न के कारण वहाँ से हट रहा था। कुछ फादर नेपाल में शरण ले चुके थे। यही वह मोड़ था जब फादर जोसेफ मैरी को बेतिया भेजा गया, जबकि अन्य फादरों को चनपटिया के चुहड़ी क्षेत्र की ओर भेजा गया।

Church Jublee Year

1934 का भूकंप और बेतिया कैथोलिक चर्च

साल 1934 में जब महाभूकंप ने पूरे बिहार को हिला कर रख दिया, तब बेतिया भी उससे अछूता नहीं रहा। उस दौर की लगभग सभी प्रमुख पुरानी इमारतें जमींदोज हो गईं, और उन्हीं में शामिल था बेतिया का कैथोलिक चर्च, जो 1934 के विनाशकारी भूकंप में पूरी तरह से तबाह हो गया था। चर्च का जो स्वरूप आज हम सबके सामने गर्व से खड़ा है, वह उसी विनाश के बाद नवीन रूप में 21 नवंबर 1951 को उद्घाटित हुआ। यह भारत के सबसे सुंदर चर्चों में शामिल है।

इस चर्च की कुल लंबाई 243 फीट और चौड़ाई 60 फीट है। इसका सेंट्रल टॉवर 72 फीट ऊँचा है, जो एक बड़े चाँदी के गुंबद से घिरा है। यही गुंबद चार विशाल घंटियों को समेटे हुए है, जिनकी गूंज आज भी बेतिया के कई किलोमीटर तक सुनाई देती है। खास बात यह है कि ये घंटियाँ 1934 की तबाही से बचाई गई थीं—और उनमें से एक घंटी नेपाल द्वारा उपहार स्वरूप दी गई थी।

Bettiah Christmas day Church

चर्च के भीतर की वेदियाँ इतालवी संगमरमर से बनी हैं और फर्श टेराज़ा संगमरमर तथा सुंदर टाइलों से सुसज्जित है। इसका आंतरिक वातावरण श्रद्धा और शांति से भर देता है। यह सिर्फ मसीही श्रद्धालुओं के लिए ही नहीं, बल्कि सभी धर्मों और संस्कृतियों के लोगों के लिए भी एक दर्शनीय स्थल है। यही कारण है कि यह चर्च बेतिया के मसीही समुदाय का गौरव है और पूरे चंपारण की सांस्कृतिक विरासत का अमूल्य हिस्सा।

बेतिया में चर्च की शुरुआती नीवं की कहानी

यह कहानी एक ऐसे दौर से शुरू होती है जब भारतीय उपमहाद्वीप पर मुगलों का शासन था और बेतिया एक उभरती हुई रियासत के रूप में जाना जाता था। यह वही समय था जब बेतिया न केवल राजनीतिक रूप से सशक्त हो रहा था, बल्कि एक धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में भी विकसित हो रहा था।

रोमन कैथोलिक चर्च बेतिया का इतिहास 18वीं सदी से जुड़ा है, और यह एक ऐतिहासिक घटना के साथ शुरू होता है। सन् 1742 में बेतिया की महारानी एक गंभीर बीमारी से ग्रसित हो गई थीं। जब स्थानीय वैद्य-हकीम उपचार में असफल रहे, तब बेतिया के तत्कालीन महाराजा ने पटना से प्रसिद्ध ईसाई चिकित्सक और धर्म प्रचारक फादर जोसेफ मैरी को बुलाया। फादर जोसेफ मैरी के उपचार से महारानी शीघ्र ही स्वस्थ हो गईं। इस चमत्कारी इलाज से प्रभावित होकर, महाराज ने फादर जोसेफ को बेतिया में ईसाई धर्म प्रचार की अनुमति दे दी। यही घटना बेतिया में ईसाई मिशन की नींव बनी।

Christian Quarters Bettiah का निर्माण की दास्ताँ

राजा धुरूप सिंह ने रोम स्थित पोप बेनेडिक्ट XIV को पत्र लिखकर मिशन के लिए औपचारिक अनुमति मांगी। 1 मई 1742 को पोप ने अपने पत्र में बेतिया में कैपुचिन पादरियों को धर्म प्रचार की अनुमति दी। इसके बाद राजा ने 16 हेक्टेयर भूमि चर्च निर्माण और मिशन के लिए दान की, जिसे आज भी Christian Quarters के नाम से जाना जाता है।

बेतिया में चर्च की स्थापना

सन 1749 में जब बर्निनी को चंदननगर भेजा गया, तो वे वहाँ के फ्रांसीसी बस्ती के नैतिक पतन से व्यथित होकर दोबारा अपने बेतिया शहर लौट आए। और राजा धुरूप सिंह ने उन्हें और उनके साथियों को क्रिस्चियन क्वार्टर स्तिथि एतिहासिक चर्च के निर्माण के लिए लकड़ी और आवश्यक चीजे दी। आपको बता दें की, 1751 के क्रिसमस डे यानि की 25 दिसंबर 1751 पर जब चर्च का उद्घाटन हुआ, तो वहां के राजा, दरबारियों और बेतिया आम नागरिकों की बड़ी उपस्थिति रही।

बेतिया चर्च की शुरुआत

सन् 1769 में रोम से आए पादरियों ने बेतिया में आधिकारिक रूप से एक मिशन की स्थापना की। इस मिशन का उद्देश्य केवल धर्म प्रचार नहीं था, बल्कि समाज की सेवा करना भी था। इस मिशन के अंतर्गत:

  • कई स्कूलों की स्थापना की गई
  • अनाथालय और अन्य कल्याणकारी संस्थानों की शुरुआत हुई
  • शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कार्यों पर विशेष ध्यान दिया गया

इन प्रयासों ने बेतिया ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण चंपारण क्षेत्र को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से समृद्ध किया। जर्मन भूगोलवेत्ता और मिशनरी जोसेफ टिफेंथलर ने अपनी पुस्तक में लिखा कि बेतिया के किले की चारदीवारी के अंदर एक हिंदू मंदिर और फ्रांसिस्कन मिशनरियों का कॉन्वेंट स्थित था, जो भारत में धार्मिक समन्वय का अनूठा उदाहरण था।

Bettiah Girjaghar

बेतिया रोमन कैथोलिक चर्च से जुड़ी वर्षवार खास बातें

  • सन् 1745 में, 7 दिसंबर की तारीख को, फादर जोसेफ मैरी बेतिया पहुँचे। राजा धुरुप सिंह ने उन्हें एक सुंदर बग़ीचे के साथ एक घर दिया।
  • 1766 में जब अंग्रेजों ने बेतिया पर आक्रमण किया, तो ब्रिटिश जनरल सर रॉबर्ट बार्कर ने फादरों को आश्वासन देते हुए उन्हें लगभग 60 बीघा ज़मीन और अतिरिक्त 200 बीघा भूमि ‘दुस्साइया पादरी’ के नाम से बाहर के इलाके में दान की। यह दान ईसाई समुदाय और चर्च के पालन-पोषण के लिए किया गया था।
  • 1786 में इसे कलकत्ता में गवर्नर जनरल इन काउंसिल द्वारा मान्यता और स्थायित्व प्राप्त हुआ।
  • 1892 में बेतिया को नेपाल और आसपास के क्षेत्रों का ‘प्रीफेक्चर अपोस्टोलिक’ घोषित किया गया, जो मिशन के विकास का एक महत्वपूर्ण चरण था।
  • 1914 में जब प्रथम विश्व युद्ध शुरू हुआ, तब बेतिया और चुहड़ी क्षेत्र में रह रहे ऑस्ट्रियाई फादरों को गिरफ्तार कर नजरबंद कर दिया गया और अगले वर्ष निर्वासित कर दिया गया। इसके पश्चात लाहौर से बेल्जियम के कैपुचिन फादर, विशेष रूप से रेवरेंड फेलिक्स, ने कार्यभार संभाला। उनकी सहायता के लिए छह भारतीय फादर नियुक्त किए गए, जो 1907 से 1914 के बीच में तैयार हुए थे।
  • 1931 में बेतिया को पटना डिओसस में सम्मिलित किया गया। नए डिओसस के पहले बिशप डॉ. लॉस वेन होक बने। अब बेतिया मिशन अमेरिकी प्रांत ‘जीसस सोसायटी ऑफ मिसौरी’ के अधीन आ गया, जो बाद में उपविभाजित होकर शिकागो प्रांत के अधीन हुआ।
  • मिशन का शैक्षणिक योगदान भी उल्लेखनीय रहा है। 1920 के दशक में बेतिया अनुमंडल में मिशन की गतिविधियों का विस्तार हुआ और संत स्टेनिस्लॉस मिडिल स्कूल बिहार का सबसे बड़ा स्कूल बना, जिसमें 1000 से अधिक छात्रों का नामांकन था।
  • 1931 में स्थापित क्रिस्ट राजा हाई स्कूल, जो आज भी राज्य के सबसे प्रतिष्ठित विद्यालयों में गिना जाता है, मिशन की दूरदृष्टि का प्रमाण है। मिशन का प्रिंटिंग प्रेस भी उल्लेखनीय रहा, जो पचास साल तक प्रकाशित सामग्री छापता रहा। होली क्रॉस यूरोपियन सिस्टर्स ने लड़कियों की शिक्षा के लिए सेंट टेरेसा हाई स्कूल, महिला शिक्षकों के लिए ट्रेनिंग स्कूल, धर्मार्थ औषधालय और बुनाई स्कूल का संचालन किया। बेतिया शहर से दो मील दूर फकीराना क्षेत्र में स्थित ‘सिस्टर्स एसोसिएशन’ ने अनाथ बच्चों और बेसहारा महिलाओं के लिए आश्रय और सेवा का कार्य किया। 1924 में गठित यह भारतीय सिस्टर्स मंडली आज भी सक्रिय है।
  • 1934 के भयानक बिहार भूकंप में 100 साल पुराना चर्च पूरी तरह नष्ट हो गया था।
  • 1951 में नया चर्च बनकर तैयार हुआ, जिसका उद्घाटन पूरे उत्तर भारत के लिए गर्व का क्षण बना। 243 फीट लंबे, 60 फीट चौड़े इस चर्च में एक 72 फीट ऊँचा टॉवर है, जो चार विशाल घंटियों से युक्त है—जिनमें से एक नेपाल की भेंट थी। इसकी वास्तुकला बीजान्टिन शैली और भारतीय शिल्प की अनूठी मिश्रण है। वेदियाँ इतालवी संगमरमर से बनी हैं और टाइलें सुंदर टेराज़ा फिनिश में हैं।

रोमन कैथोलिक चर्च की विशेषताएं

यह चर्च अपने भव्य भवन, आधुनिक और पारंपरिक वास्तुकला के संगम, तथा शांत वातावरण के कारण बेतिया के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है। चर्च के परिसर में प्रवेश करते ही एक अलौकिक शांति और पवित्रता का अनुभव होता है, जो हर किसी के मन को छू जाता है।

Bettiah Church Drone
  • चर्च की सुंदर वास्तुकला जो रोमन शैली में निर्मित है
  • हर दीवार और खंभे में कलात्मक कारीगरी
  • शांत वातावरण और साफ-सुथरा परिसर
  • ईसाई धार्मिक पर्वों के अवसर पर विशेष प्रार्थनाएं और आयोजनों की व्यवस्था

क्रिसमस डे पर विशेष आयोजन

क्रिसमस के दिन के अवसर पर यह चर्च बेतिया का प्रमुख आकर्षण केंद्र बन जाता है। कई हजारों की संख्या में लोग, चाहे वे किसी भी धर्म के क्यों न हों, वह सभी सुबह से लेकर शाम तक यहाँ एकत्र होते हैं और प्रभु यीशु के जन्मदिन को पूरे उल्लास और प्रेम से मनाते हैं। बेतिया चर्च को रंग-बिरंगी लाइटों और सजावट से सजाया जाता है।

Christmas Time

साथ ही चर्च रोड, में बच्चो के लिए पेस्ट्री, केक, गुब्बारे, खिलौने इत्यादि के दुकाने सजती हैं। साथ ही बच्चों के लिए विशेष कार्यक्रम, कैरोल गायन, सामूहिक प्रार्थना और सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ भी होती हैं। यह आयोजन शहर की धार्मिक सहिष्णुता और भाईचारे का जीवंत प्रमाण बन जाता है।

बेतिया के सामाजिक जीवन में योगदान

रोमन कैथोलिक चर्च सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह बेतिया के सामाजिक ताने-बाने में गहराई से जुड़ा हुआ है। बेतिया चर्च द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों और संस्थानों से:

  • हजारों बच्चों को शिक्षा मिली है
  • समाज में स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैली है
  • जरूरतमंदों को सहायता और संरक्षण मिला है
Bettiah Catholic Church History: बेतिया के कैथोलिक चर्च की कहानी जानिए, 250 वर्षों से चंपारण की विरासत 1

यह कहना गलत नहीं होगा कि इस चर्च और मिशन ने चंपारण के सामाजिक विकास में एक अहम भूमिका निभाई है।

Bettiah Parish Society क्या है?

Bettiah Parish Society एक धार्मिक परोपकारी संस्था है, जो बेतिया में ईसाई समुदाय के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए कार्य करती रही है। यह Parish (पैरोश = गिरजाघर से जुड़ी एक संस्था) सीधे तौर पर बेतिया रोमन कैथोलिक चर्च से संबंधित है। इस Parish को दो प्रमुख मिशनरी ईसाई संगठनों ने संचालित किया:

1. Capuchin Mission Society (1745–1921):

  • इटली से आए Capuchin पादरियों ने इस मिशन की शुरुआत की।
  • यह पहला ईसाई मिशन था जो बेतिया में चर्च और समुदाय की नींव रखने आया।
  • इन्होंने चर्च बनवाया, धर्म प्रचार किया और स्कूल व सेवा कार्य शुरू किए।
  • बेतिया को उन्होंने एक ग्लोबल मिशन हब की तरह विकसित किया, जिससे इसे अंतरराष्ट्रीय धार्मिक नेटवर्क में शामिल किया गया।

2. Patna Jesuit Society (1921–2000):

  • उसके बाद इस मिशन को Jesuits (जेसुइट पादरी) ने सँभाला, जो शिक्षा, सेवा और समाज सुधार के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • इनके कार्यों का केंद्र भी बेतिया का रोमन कैथोलिक चर्च और उसके आसपास के क्षेत्र ही रहे।
  • ये संस्थान आज भी बेतिया और पश्चिम चंपारण में चल रहे हैं, और स्थानीय शिक्षा व्यवस्था को आकार देने में इनकी भूमिका अहम रही है।
Bettiah Church Right Side

ये दोनों संगठन रोमन कैथोलिक चर्च के भीतर के आदेश हैं। इनका मुख्य कार्य धर्म प्रचार, चर्च का प्रबंधन, स्कूलों की स्थापना, और परोपकारी कार्य करना होता है। इसलिए Bettiah Parish Society एक चर्च-आधारित संगठन है, जो बेतिया रोमन कैथोलिक चर्च के अंतर्गत ही कार्य करता रहा।

बेतिया चर्च पर नवाब मीर कासिम और ईस्ट इंडिया कंपनी का हमला

  • 1761 में नवाब मीर क़ासिम अली खान ने बेतिया किले और चर्च पर हमला किया, इसी वर्ष जोसेफ बर्निनी का निधन भी हुआ
  • 1766 में ब्रिटिश जनरल सर रॉबर्ट बार्कर ने भी बेतिया पर हमला किया और चर्च को क्षति पहुंचाई।

बेतिया चर्च पर नवाब मीर कासिम का हमला

बेतिया चर्च का इतिहास संघर्षों और बदलावों से भरा हुआ है, 1761 में Mir Qasim ने बेतिया किला और चर्च पर हमला किया, नवाब मीर क़ासिम ने ईस्ट इंडिया कंपनी के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ कई जगहों पर अपनी ताकत दिखाई। बेतिया भी उस समय उनके हमले का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। बेतिया उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासनिक और आर्थिक नियंत्रण वाला इलाका था। मीर क़ासिम ने कंपनी के राजस्व संग्रह को बाधित करना, और कंपनी के प्रभुत्व को चुनौती देने के उद्देश्य से बेतिया पर हमला कर ईस्ट इंडिया कंपनी की पकड़ को कमजोर करने का प्रयास किया।

और इसी हमले में बेतिया राज सहित बेतिया चर्च को निशाना बनाया गया, बेतिया पर मीर क़ासिम का हमला केवल एक घटना नहीं था, बल्कि पटना, क़तवा और बक्सर की लड़ाई के बीच की रणनीतिक लड़ाई का हिस्सा था। इस संघर्ष में मीर क़ासिम ने शाह आलम II और शुजा-उद-दौला के साथ मिलकर ईस्ट इंडिया कंपनी के विस्तार को रोकने की कोशिश की।

बेतिया चर्च पर ईस्ट इंडिया कंपनी का हमला

बेतिया रियासत के तत्कालीन शासक राजा जुगल किशोर सिंह ने ब्रिटिश शासन को अपने क्षेत्र में मान्यता देने से साफ इनकार कर दिया। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी सेना के साथ मोर्चा खोला। सन 1766 में, ब्रिटिश सेना के जनरल सर रॉबर्ट बार्कर के नेतृत्व में बेतिया पर आक्रमण किया गया। इस हमले में न केवल बेतिया का ऐतिहासिक किला क्षतिग्रस्त हुआ, बल्कि वहाँ स्थित रोमन कैथोलिक चर्च को भी नुकसान पहुँचाया गया। अंततः उन्हें अपने सैनिकों सहित बुंदेलखंड की ओर पीछे हटना पड़ा।

राजा जुगल किशोर सिंह के चले जाने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने बेतिया में एक ‘एस्टेट मैनेजर’ नियुक्त किया ताकि प्रशासनिक नियंत्रण बनाए रखा जा सके। लेकिन स्थानीय प्रशासन चलाना उनके बस की बात नहीं थी, न तो भाषा की जानकारी थी और न ही संस्कृति की समझ, इसी अनुभवहीनता के कारण, सन 1771 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने स्वयं राजा जुगल किशोर सिंह को दोबारा आमंत्रित किया और उनसे बेतिया रियासत को कंपनी की छत्रछाया में प्रशासनिक रूप से चलाने का अनुरोध किया। राजा ने यह प्रस्ताव स्वीकार किया और इस तरह एक बार फिर बेतिया की बागडोर उनके हाथों में आई।

1786 में मिशन को सरकारी सम्मान और ज़मीन का अनुदान

ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1786 में बेतिया मिशन को दिए

60 बीघा भूमिकिले के भीतर
200 बीघा भूमिकिले के बाहर

और इसके साथ ही चुहाड़ी गाँव दान में दिया।

बेतिया राज समय 1786 तक

बेतिया में 2500 ईसाई
चुहाड़ी में 700 ईसाई
डोसैया में400 ईसाई

यानी 1786 तक कुल 3600 ईसाई बेतिया राज में निवास कर रहे थे, उस समय इन तीनों जगह कैथोलिक चर्च स्थापित थे।

इसके बाद 1857 की क्रांति के समय बेतिया महाराजा ने ब्रिटिश सरकार का साथ दिया। इसके परिणामस्वरूप, 1909 में ‘कोर्ट ऑफ वार्ड्स’ के माध्यम से बेतिया राज को ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण में लाया गया।

बेतिया चर्च एवं बेतिया ईसाई समुदाय से संबंधित मुख्य बातें

  • Capuchin मिशन को बेतिया महाराज के आमंत्रण पर बुलाया गया था।
  • फादर जोसेफ मैरी बर्निनी ने 1751 में पहला चर्च बनवाया, जिसका उद्घाटन क्रिसमस डे पर हुआ।
  • राजा खुद उस चर्च समारोह में शामिल हुए, संगीतकार भेजे और हिन्दू-ईसाई मैत्री को सार्वजनिक रूप से दर्शाया।
  • राजा ने 16 हेक्टेयर ज़मीन चर्च और मिशन के लिए दी, जिसे “Christian Quarters” कहा गया।
  • बेतिया चर्च को उन्होंने एक ग्लोबल मिशन हब की तरह विकसित किया, जिससे इसे अंतरराष्ट्रीय धार्मिक नेटवर्क में शामिल किया गया।
  • बेतिया ईसाई समुदाय भारत का सबसे पुराना कैथोलिक समुदाय माना जाता है, जो पूरी तरह बेतिया आधारित है।
  • 1761 में Mir Qasim ने बेतिया किला और चर्च पर हमला किया।
  • 1766 में ब्रिटिश हमले में चर्च क्षतिग्रस्त हुआ।
  • 18वीं से 20वीं सदी तक इन चर्च मिशनों ने स्कूल, अनाथालय, हेल्थ सेंटर और ट्रेनिंग संस्थानों की स्थापना की।
    • 1860: St. Stanislaus Mission Middle English School
    • 1922: Khrist Raja High School और St. Teresa’s Mission School
    • 1928: St. Teresa’s Teacher Training College
    • 1995 तक बेतिया में 27 स्कूल इस समुदाय द्वारा चलाए जा रहे थे।
    • 1991 में बेतिया की साक्षरता दर 52.8%, जबकि बेतिया ईसाईयों की 70.09% थी।
  • कानपुर जैसे उत्तर भारत के शहरी केंद्रों में पहले प्रवासी बसे (Cornelius family प्रमुख उदाहरण)।
  • UK, USA, Australia, Canada में आज बेतिया ईसाई प्रवासी बस चुके हैं।
  • इस बात का जिक्र प्रत्यक्ष रूप से पेपर में नहीं है, लेकिन 1917 में गांधीजी जब चंपारण आए थे, तो बेतिया के चर्च और ईसाई मिशन ने उनके सामाजिक आंदोलन में सहायता दी थी।
  • विशेष रूप से शिक्षा और ग्रामीण सुधार के मामलों में चर्च संस्थाओं ने सहयोग दिया।
  • ये संस्थान आज भी बेतिया और पश्चिम चंपारण में चल रहे हैं, और स्थानीय शिक्षा व्यवस्था को आकार देने में इनकी भूमिका अहम रही है।
Bettiah Catholic Church History: बेतिया के कैथोलिक चर्च की कहानी जानिए, 250 वर्षों से चंपारण की विरासत 2

शिक्षा और सेवाक्षेत्र के कारण इस समुदाय के लोग धीरे-धीरे कानपुर, पटना, और फिर UK, USA, Australia, Canada तक प्रवास कर गए। आज भी कई परिवार विदेशों में बसे हैं, लेकिन उनकी जड़ें बेतिया से जुड़ी हैं। बेतिया चर्च के उद्घाटन से लेकर आज तक, यह स्थान सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बना रहा है। हर साल क्रिसमस और गुड फ्राइडे के अवसर पर हिंदू और मुस्लिम परिवार भी चर्च में प्रार्थना के लिए आते हैं। विशेषकर मदर मैरी की प्रतिमा के पास प्रार्थना करना आम है।

Bettiah Catholic Church History

Post NameKali Bagh Mandir History
✒️ Post Date02 October 2017
✍️ Last Change30 June 2024
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📍 यह पोस्ट अपना बेतिया टीम द्वारा कई स्रोतों, सुनी सुनाई बातें, पुराने रिकॉर्ड्स और स्थानीय जानकारों के आधार पर तैयार की गई है। हमने भरसक कोशिश की है कि बेतिया चर्च से जुड़ी सभी हर महत्वपूर्ण जानकारी आप तक पहुंचे। इसके बावजूद हमारा मानना है कि शायद हम इस ऐतिहासिक चर्च से जुड़ी हर जरूरी बात को पूरी तरह शामिल नहीं कर पाए हैं। हो सकता है कुछ तथ्य गलत हो, छूट गए हों या कुछ जानकारियाँ और बेहतर तरीके से दी जा सकती थीं।

संभव है कुछ ऐतिहासिक तथ्य, स्थानिक मान्यताएँ या आपकी अपनी यादों से जुड़ी बातें इस लेख में छूट गई हों, इसलिए हम आपसे विनम्र निवेदन करते हैं कि बेतिया चर्च से जुडी कोई इतिहास जिससे हम सब अनजान हो, कोई लोककथा, कोई मिथ, कोई तथ्य या सुधार, बेतिया चर्च से जुड़ी कोई ऐसी जानकारी है जो इस पोस्ट को और समृद्ध बना सकती है, तो कृपया हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। आपकी दी गई जानकारी को हम पोस्ट में शामिल करेंगे और आपका नाम भी सम्मानपूर्वक मेंशन किया जाएगा। हमें उम्मीद है कि आपकी मदद से यह लेख और भी प्रामाणिक, संपूर्ण और उपयोगी बन सकेगा।

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