Kali Bagh Temple Bettiah: पश्चिम चंपारण जिले में स्थित काली बाग मंदिर न सिर्फ एक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह मंदिर अपने तांत्रिक इतिहास, रहस्यमयी घटनाओं और अद्भुत स्थापत्य के लिए भी पूरे देश में जाना जाता है। अगर तंत्र साधना की बात करें, तो यह मंदिर भारत के उन कुछ चुनिंदा स्थलों में शामिल है, जहां आज भी तांत्रिक परंपराओं की जीवंत झलक दिखाई देती है।
108 नरमुंडों की बलि से हुई थी स्थापना
इतिहास के अनुसार, काली बाग मंदिर की स्थापना तांत्रिक विधि से की गई थी। मान्यता है कि मंदिर निर्माण के दौरान 108 नरमुंडों की बलि दी गई थी, जो तंत्र साधना की एक अत्यंत रहस्यमयी और गूढ़ प्रक्रिया मानी जाती है। इस कृत्य का उद्देश्य स्थान की शक्ति को जागृत करना और देवी की तांत्रिक स्थापना करना था।
56 कोठियाँ और 365 देवी-देवताओं का संगम
यह मंदिर दुनिया का पहला ऐसा स्थल माना जाता है, जहां 56 कोठियों में 365 देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित हैं। हर कोठी एक विशिष्ट देवता को समर्पित है, और यह प्रतीक है हिंदू धर्म की व्यापक विविधता का। यही कारण है कि यह स्थान धार्मिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अद्वितीय है।
यदि भारत के प्रमुख शक्तिपीठों की चर्चा हो और उसमें बेतिया का काली बाग मंदिर शामिल न हो, तो सूची अधूरी मानी जाएगी। चंपारण की धरती पर स्थित यह ऐतिहासिक और आध्यात्मिक स्थल ना सिर्फ देवी उपासना का केंद्र रहा है, बल्कि यह मंदिर अपने अद्भुत स्थापत्य, तांत्रिक परंपराओं और दुर्लभ प्रतिमाओं के लिए भी विख्यात है।
जानकारों के अनुसार, काली बाग मंदिर की स्थापना बेतिया राजघराने द्वारा वर्ष 1614 ईस्वी में कराई गई थी। मंदिर की रचना में तांत्रिक पद्धति का प्रयोग किया गया था। खास बात यह है कि मंदिर के निर्माण में संस्कृत साहित्य की विश्वकोश मानी जाने वाली दो प्रतिष्ठित कृतियाँ ‘शब्दकल्पद्रुम’ और ‘वाचस्पत्यम’ का सहारा लिया गया था। मंदिर में स्थापित देवी-देवताओं की अनेक प्रतिमाओं का वर्णन इन ग्रंथों में भी मिलता है।
मंदिर परिसर का स्वरूप
मंदिर परिसर लगभग 10 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। इसका मध्य भाग एक सुंदर तालाब से सजा है, जिसके चारों ओर 365 देवी-देवताओं के छोटे-बड़े मंदिर स्थापित हैं — और यह विशेषता इस स्थान को विश्व में अद्वितीय बनाती है।
- उत्तर दिशा में स्थित है दक्षिणेश्वरी काली माता का मुख्य मंदिर, जहां शक्ति उपासक दूर-दराज़ से माता का आशीर्वाद लेने आते हैं।
- पश्चिम में है दशावतार मंदिर और उसके पास ही चौंसठ योगिनी की अलग-अलग दुर्लभ प्रतिमाएं।
- दक्षिण दिशा में एकादश रुद्र, छप्पन विनायक, दशदिकपाल, ऋद्धि-सिद्धि आदि विराजमान हैं।
- पूरब दिशा में द्वादश कला सूर्य, चारों वेद, नवग्रह और उनकी पत्नियों की प्रतिमाएं स्थापित हैं।
यह मंदिर इस दृष्टि से भी विशेष है कि यहां शाक्त (देवी) और शैव (भगवान शिव) दोनों सम्प्रदायों के साधक अपनी साधना करते हैं। एक ओर मां काली का मंदिर है, तो ठीक सामने एकादश रुद्र के दर्शन होते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि यह मंदिर समावेशी परंपरा का प्रतीक है।
कलयुग के देवता की भी है स्थापना
मंदिर की एक और विशेष बात यह है कि यहां कलयुग के देवता की भी एक मूर्ति स्थापित है। यह स्थापना इस बात को दर्शाती है कि यह स्थान केवल प्राचीन परंपराओं तक सीमित नहीं है, बल्कि वर्तमान काल की शक्तियों को भी मान्यता देता है।
नेपाल से जुड़ा धार्मिक संबंध
मंदिर के प्रधान पुजारी पं. जयचंद्र झा के अनुसार, यहां नेपाल के राजा द्वारा भेंट स्वरूप लाई गई पशुपतिनाथ महादेव की मूर्ति भी स्थापित है। इससे बेतिया और नेपाल के ऐतिहासिक धार्मिक संबंधों की पुष्टि होती है।
निशा पूजा सबसे बड़ा आयोजन
इस मंदिर का सबसे महत्वपूर्ण वार्षिक आयोजन होता है निशा पूजा, जो महा अष्टमी की रात में संपन्न होती है। इस अवसर पर शहर के हजारों लोग आधी रात को मंदिर में एक साथ ध्यान करते हैं, और मंदिर परिसर पूरी तरह आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाता है। इसी पूजा के दौरान मंदिर के बाहर लगा विशाल घंटा विशेष रूप से बजाया जाता है।
राष्ट्रीय धरोहर बनने की दिशा में पहल
इस मंदिर को भारत की राष्ट्रीय धरोहर घोषित कराने की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। इसके लिए बिहार सरकार की पूर्व कला-संस्कृति मंत्री रेणु देवी ने विशेष प्रयास किए थे।
“माँ जानकी कॉरिडोर” की तर्ज पर बेतिया में प्रस्तावित “माँ काली कॉरिडोर
बेतिया के ऐतिहासिक और आध्यात्मिक पहचान को नए स्तर पर ले जाने की दिशा में एक बड़ी पहल सामने आई है। 16वीं सदी में निर्मित काली बाग मंदिर परिसर को अब “माँ काली कॉरिडोर” के रूप में विकसित करने का विचार तेजी से सामने आ रहा है। यह पहल सीतामढ़ी में स्वीकृत “माँ जानकी कॉरिडोर” से प्रेरित है, और इसे लेकर अब शहर में धार्मिक और सांस्कृतिक चेतना को जन आंदोलन का रूप देने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
दक्षिणमुखी काली की विरल उपस्थिति
बताया जाता है कि इस तरह का दक्षिणमुखी काली मंदिर भारतवर्ष में मात्र दो स्थानों पर है — एक कोलकाता और दूसरा बेतिया। यहाँ स्थापित माँ काली की दक्षिण की ओर मुख वाली भव्य और दिव्य प्रतिमा इस मंदिर को तांत्रिक परंपरा में विशेष स्थान प्रदान करती है।
तंत्र साधना का ऐतिहासिक केंद्र
यह मंदिर तांत्रिक साधना और विद्या की सिद्धि के लिए दशकों तक एक प्रमुख केंद्र रहा है। दूर-दूर से साधक यहाँ साधना के लिए आया करते थे। मंदिर में व्याप्त ऊर्जा, वातावरण और संरचना आज भी श्रद्धालुओं को एक विशेष आध्यात्मिक अनुभूति प्रदान करती है।
56 कोटि के देवी-देवताओं का अद्भुत संगम
इस मंदिर की एक अनोखी विशेषता यह है कि यहां हिंदू धर्म की सभी 56 कोटियों (अर्थात विभिन्न प्रकारों) के देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं।
- मंदिर का मुख्य द्वार उत्तर दिशा की ओर खुलता है।
- प्रवेश करते ही दोनों ओर द्वारपालों की मूर्तियां मौजूद हैं।
- अंदर बढ़ने पर दक्षिण दिशा में दक्षिणेश्वर काली माता का मंदिर स्थित है।
- उनके समीप भगवान शिव, सूर्य देव, नवग्रह, विष्णु दशावतार, विनायक गणेश (जिनमें 108 छोटी प्रतिमाएं उकेरी गई हैं), और भगवान कार्तिकेय जैसे देवताओं के मंदिर चारों दिशाओं में स्थित हैं।
मंदिर परिसर के बीचों-बीच एक विशाल पोखरा भी स्थित है, जिसके बारे में मान्यता है कि इसके भीतर सात प्राचीन कुएं हैं। यह पोखरा ना केवल इस स्थान की शोभा बढ़ाता है, बल्कि इसके साथ जुड़ी मान्यताएं इसे और भी रहस्यमय और पवित्र बनाती हैं।
कई वर्षों तक यह मंदिर तांत्रिक सिद्धियों की साधना का एक प्रसिद्ध केंद्र रहा है। भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी साधक और तांत्रिक यहां साधना करने आते थे। यहाँ का वातावरण, ऊर्जा और पारंपरिक संरचना आज भी साधकों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
Kali Bagh Temple Bettiah
Post Name | Kali Bagh Mandir History |
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✍️ Last Change | 06 May 2025 |
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