कई बार इंसानों पर भी हमला बोल चुके इन मगरमच्छों के भय से आधा से अधिक गांव खाली हो चुका है। लोगों ने बगल के गांवों में अपना आशियाना बना लिया है। वन विभाग भी इन मगरमच्छों को पकड़ पाने में विफल है।गांव के लोग यहां से पलायन कर यूपी में बस गए हैं।
दरअसल, इस गांव के समीप पिपरासी तटबंध से सटे एक नाले में दो दर्जन से अधिक मगरमच्छ रहते हैं। नाले के समीप से ही गांव में आने-जाने का रास्ता है। मगरमच्छ भोजन की तलाश में नाले से निकल कर तटबंध पर आ जाते हैं। इनके भय से गांव के लोगों की आवाजाही बंद हो जाती है।
दर्जनों बकरियों और कुत्तों को अपना निवाला बना चुके मगरमच्छ कई बार भोजन की तलाश में गांव-घरों में भी घुस जाते हैं। पिछले वर्ष गांव के भीखम कुर्मी, महातम शर्मा और जयनारायण साह की जान जाते-जाते बची।
रात के अंधेरे में मगरमच्छ इनके घर में घुस कर बिछावन के नीचे तक पहुंच चुके थे। इस घटना से दहशतजदा ग्रामीणों ने गांव छोडऩे का निर्णय ले लिया। अब दर्जनों परिवार सीमा से सटे यूपी के गांवों में घर बना लिए हैं।
बचे हैं दो दर्जन परिवार
परसौनी गांव में दो वर्ष पहले तक भरी पूरी आबादी मौजूद थी। गांव के 14 परिवारों को इंदिरा आवास योजना का लाभ मिला। लेकिन, मगरमच्छों के भय से लाभार्थी ललन कुशवाहा, परमा कुशवाहा, सिंधु कुर्मी, महातम शर्मा, विक्रम शर्मा, पारस शर्मा, डिग्री कुशवाहा, बच्चा बैठा, सुभाष बैठा, केदार बैठा, सुखलाल कुशवाहा आदि सरकारी राशि से बने पक्के मकान को छोड़कर उत्तर प्रदेश के जरार गांव में जा बसे।
नहीं हुई कोई कार्रवाई
पूर्व प्रमुख यशवंत नारायण का कहना है कि मगरमच्छों के आतंक से निजात दिलाने के लिए वन विभाग के उच्चाधिकारियों से बात की। लेकिन, कोई कार्रवाई नहीं हुई। बीडीओ ने गांव को उजड़ता देख डीएम को पत्र लिखा।
डीएम ने गांव की सुरक्षा को लेकर वन विभाग को आवश्यक कार्रवाई के निर्देश दिए। तब वन विभाग की टीम करीब 9 माह पूर्व महाजाल के साथ उक्त नाले पर पहुंची। कड़ी मशक्कत के बाद पांच मगरमच्छ महाजाल में फंस गए। जिन्हें वन विभाग के अधिकारी गंडक नदी में ले जाकर छोड़ दिए। साथ ही गांव के लोगों की सतर्कता के लिए एक बोर्ड लगा गए।
हाल ही में पदभार ग्रहण किया हूं। गांव में जाकर वस्तुस्थिति का जायजा लेंगे। फिर मगरमच्छों को सुरक्षित निकालने की कवायद शुरू की जाएगी।–अविनाश कुमार सिंह, प्रशिक्षु डीएफओ सह रेंजर मदनपुर।