बेतिया: ससुराल किसी भी व्यक्ति के जीवन की वह खूबसूरत राजधानी है,जहाँ से वह ब्याह के पत्नी जैसी-फायदेमन्द और डॉबर च्यवनप्राश की तरह विश्वसनीय जीवनसंगिनी लाने का अलौकिक गौरव प्राप्त करता है। यह गौरव अपने रामखेलावन चाचा को भी प्राप्त था।
उनकी पत्नी वही महान महिला थी जो पुरुष या पति को वैवाहिक जीवन के उन तमाम मूल कर्तव्यों का अक्षरश: पालन करवा रही थी। ऐसे ऐसे कार्य जो बीते वर्षों मे कभी भी माँ के कार्यकाल में रामखेलावन चाचा ने किये नहीं होंगे। लेकिन, चाचा थोड़े रसिक आदमी ठहरे बिल्कुल अपने एनडी तिवारी की तरह। अब यह अनुशासन कहां पसंद आने वाला था, लिहाजा उन्होंने चाची को तलाक दे दिया और दूध में पड़ी मक्खी की तरह उठाकर उन्हें अपने घर से वापस मायके भेज दिया।
सब कुछ जैसे तैसे चल रहा था लेकिन अचानक निकाय चुनाव का दौर शुरू हो गया अब चाचा की स्थिति बदल गई है। इन दिनों तो चाचा बिल्कुल तुलसीदास बने हुए हैं। दौड़े-दौड़े पत्नी को मायके से ले आये उनकी चरण वंदना की और किसी देवी की तरह उन्हें अपने घर में विराजमान करवाया। इतना ही नहीं पत्नी प्यार के नाते चाचा अपने शयनकक्ष में उसके श्रृंगारदान के बगल में एक डिब्बे मे बंद कर रंखे” ससुराल की मिट्टी को बिना किसी नागे के प्रतिदिन अपने वैवाहिक ललाट पे किसी चंदन की तरह लगाना शुरु कर दिया मुझे तो पहले समझ में नहीं आया कि आखिर चक्कर क्या है आखिर चाचा में ऐसा परिवर्तन क्यों हो गया.तभी अचानक मुझे ध्यान आया कि यह निकाय चुनावों में महिला आरक्षण का कमाल है।
तब मुझे लगा कि वे लोग वाकई धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने चुनाव में महिला आरक्षण का प्रावधान किया क्योंकि उन्होंने ऐसे चाचाओं पर नकेल लगाने की बढि़या कोशिश की।
चुनाव के नामांकन में चाचा ने पत्नी को किसी तरह मनाया और नामांकन स्थल तक ले गये.खैर नामांकन भी हो गया और चाची वार्ड से उम्मीदवार हो गई।
अब तो चाचा अपनी धर्मपत्नी को लेकर मोहल्लों में घूमने लगे.चारों ओर घूमाकर उनकी कसमें खाते कि विकास करुंगा,इनके नाम पर हमें वोट दो। इधर चाची ने भी पुराने दिनों की बात याद की और पिछली गलतियों की सूद समेत वसूली का मन बना लिया,उन्होंने सोचा कि अगर ये जीत गये तो और दिक्कक होगी फिर से सताने का काम शुरु होगा। घर में मेरी कोई हैसियत है ही नहीं और न कभी होगी ये सब सिर्फ चुनाव का खेल है.लेकिन चाचा तो राजनीति के शातिर खिलाड़ी ठहरे। चाची का पैर पकड़ लिया ये जानते हुए भी कि वह कभी उनका साथ नहीं देगी। चाचा बिल्कुल कांग्रेस बन गये और अपने हार का कारण जानते हुए भी राहुल गांधी की तरह चाची का बचाव जनता के समक्ष करने लगे.उनके इस कांग्रेसी ने सवाल उठा दिया कि अरे चाचा ,चाची तो साथ दे नहीं रही। आप क्यों वोट के चक्कर में पड़े हो.
चाचा बात काटते हुए बोले-अरे बेचारी सीधी सी है,उसको कुछ पता नहीं है.ये तो परिवार का मामला है। चलता ही रहता है,मान जाएगी .लेकिन आपलोग कुछ गलत न सोचना वोट तो मुझे ही देना। किसी ने कहा कि अरे चाचा ये पब्लिक है सब जानती है पहले परिवार की समस्या तो सुलझा लो फिर वार्ड की समस्या सुलझाना.हमेशा चाची को दुत्कारते रहे अब चुनाव आया तो उन्हें आगे खड़ा कर दिया.लेकिन भूलो मत ये पब्लिक है सब जानती है.अब चाचा बेचारे क्या करते अपना सा मुंह लेकर चल दिये..।
—- नागरिक
आचार संहिता की खुलेआम उड़ रही धज्जियां, प्रशासन मौन
….नगर निकाय के चुनाव में नगर में आदर्श आचार संहिता की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है। अब तक किसी भी प्रत्याशी पर प्रशासनिक नकेल नहीं कसे जाने के कारण कुछ प्रत्याशियों का मनोबल उंचा है। उनके द्वारा जहां देर रात तक वाहनों के माध्यम से प्रचार प्रसार किये जा रहे है। काफी पावर के ध्वनि विस्तारक यंत्र लगा दिये जाने के कारण लोगों को दिन भर की थकान के बाद रात में भी आराम नहीं मिल रहा है। कारण कि एक तो चुनाव प्रचार का शोर तो दूसरी ओर मतदाताओं के सोने के बाद एक के बाद एक प्रत्याशी उनके घर पहुंच जा रहे है। जबकि शहरी क्षेत्र होने के कारण शहर की ज्यादातर आबादी या तो नौकरी पेशा में है या फिर व्यवसाय का काम करते है। पूरे दिन वे कड़ी मेहनत करते है पर रात में भी उन्हें चैन का नींद नसीब नहीं हो रहा है। सजग लोगों का मानना है कि भले ही प्रशासन दिन में वाहनों की जांच अभियान चला रही है पर रात में भी वाहनों की जांच जरुरी है। कारण कि चर्चा यह भी है कि रात में कुछ लोग मतदाताओं को पटाने के लिए बाइक की डिक्की में मादक पदार्थ व रुपए लेकर भी मतदाताओं के घर की ओर रुख कर रहे है। भले ही प्रशासन की नजर में ऐसे मामले प्रकाश में नहीं आये है पर चौक चौराहों पर इसकी चर्चा चारों तरफ है। इतना ही नहीं होटल में भी खाने खिलाने का दौर चल रहा है। कुछ तो अपने घरों पर ही होटल चला रहे है। प्रचार वाहनों का भी गलत उपयोग किया जा रहा है। मानक के अनुसार न तो इस पर बाजा बज रहे है नहीं समय का ही पालन किया जा रहा है। वाहनों पर देशभक्ति के साथ साथ फूहड़ भोजपुरी गानों को भी बजा कर वोट मांगने का कार्य किया जा रहा है।
पहचान पत्र के लिए अब भी कसरत कर रहे प्रत्याशी
नगर परिषद मैदान में उतरे प्रत्याशी अब पहचान पत्र बनाने के लिए कसरत कर रहे है। कुछ ने तो इसमें सफलता हासिल कर ली है पर जो बाकि है वे चाह रहे है कि कितना जल्दी उन्हें भी पहचान पत्र मिल जाए। बताते है कि पहचान पत्र का होना भी आवश्यक है। ताकि किसी भी समय वे किसी भी सरकारी पदाधिकारी को दिखा सके कि वे प्रत्याशी है। साथ ही पहचान पत्र से यह भी तय हो जाएगा कि वे किस वार्ड से प्रत्याशी है। कुछ तो अब से ही चुनाव एजेंट का भी पहचान पत्र बनाने के लिए प्रयास कर रहे है।
अब तक किसी ने भी नहीं दिया वाट्सऐप व फेसबुक पर खर्च का ब्योरा
अब तक करीब करीब सभी प्रत्याशियों ने चुनाव खर्च का अब तक का व्योरा दे रखा है। पर किसी भी प्रत्याशी ने वाट्सएप व फेसबुक पर कर रहे प्रचार के खर्च का ब्योरा नहीं दिया है। जबकि ज्यादातर लोग इसका उपयोग प्रचार प्रसार के लिए कर रहे है। जाहिर है कि इसमें भी बगैर ईजी कराये या फिर मोबाइल को रिचार्ज कराये वाट्सऐप या फिर फेसबुक नहीं चला रहे है। फिर इसको क्यों छुपाकर रखा जा रहा है। इसकी भी जांच की जरुरत है। ताकि चुनाव कार्य में अधिक धन के खर्च पर लगाम कसने के साथ साथ ब्योरा प्रस्तुत नहीं करने वालों पर कार्रवाई किया जा सके। जानकारों की माने तो वाट्सएप व फेसबुक पर प्रचार प्रसार से जो नगर के मतदाता नहीं है वे भी परेशान है। कारण कि उन्हें भी प्रत्याशियों के प्रचार प्रसार को झेलने की विवशता बन गई है।
आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के मामले कही से भी पकड़ में आते है तो वैसे प्रत्याशियों व विधिसम्मत कार्रवाई होगी।
— सुनील कुमार
एसडीएम सह निर्वाची पदाधिकारी, बेतिया