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वल्मीकीनगर का एक दृश्य |
चंपारण का नाम चंपा-अरण्य से बना है जिसका अर्थ होता है चम्पा के पेड़ों से आच्छादित जंगल..
पूर्वी चम्पारण के उत्तर में एक ओर जहाँ नेपाल तथा दक्षिण में मुजफ्फरपुर स्थित है, वहीं दूसरी ओर इसके पूर्व में शिवहर और सीतामढ़ी तथा पश्चिम में पश्चिमी चम्पारण जिला है।
महाकाव्य काल से लेकर आज तक चंपारण का इतिहास गौरवपूर्ण एवं महत्वपूर्ण रहा है।
पुराण में वर्णित है कि यहाँ के राजा उत्तानपाद के पुत्र भक्त ध्रुव ने यहाँ के तपोवन नामक स्थान पर ज्ञान प्राप्ति के लिए घोर तपस्या की थी।
एक ओर चंपारण की भूमि देवी सीता की शरणस्थली होने से पवित्र है वहीं दूसरी ओर
आधुनिक भारत में गाँधीजी का चंपारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास का अमूल्य पन्ना है।
राजा जनक के समय यह तिरहुत प्रदेश का अंग था। लोगों का ऐसा विश्वास है कि चानकीगढ, राजा जनक के विदेह प्रदेश की राजधानी थी। जो बाद में छठी सदी ईसापूर्व में वैशाली के साम्राज्य का हिस्सा बन गया।
भगवान बुद्ध ने यहाँ अपना उपदेश दिया था जिसकी याद में तीसरी सदी ईसापूर्व में
प्रियदर्शी अशोक ने स्तंभ लगवाए और स्तूप का निर्माण कराया। गुप्त वंश तथा पाल वंश के पतन के बाद मिथिला सहित समूचा चंपारण प्रदेश कर्नाट वंश के अधीन हो गया।
दुसरे देशो के राजा के अधीन होने तक तथा उसके बाद भी यहाँ स्थानीय क्षत्रपों का सीधा शासन रहा।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय चंपारण के ही एक रैयत एवं स्वतंत्रता सेनानी राजकुमार शुक्ल के बुलावे पर महात्मा गाँधी अप्रैल 1917 में मोतिहारी आए और नील की फसल के लागू तीनकठिया खेती के विरोध में सत्याग्रह का पहला सफल प्रयोग किया।
आजा़दी की लड़ाई में यह नए चरण की शुरूआत थी। बाद में भी बापू कई बार यहाँ आए। अंग्रेजों ने चंपारण को सन 1866 में ही स्वतंत्र इकाई बनाया था लेकिन 1971 में इसका विभाजन कर पूर्वी तथा पश्चिमी चंपारण बना दिया गया। तिरहुत का अंग होने पर भी अलग भाषा तथा भौगोलिक विशिष्टता के चलते चंपारण की संस्कृति बज्जिका भाषी क्षेत्रों से थोड़ा भिन्न है। जिले के सभी हिस्सों में भोजपुरी बोली जाती है लेकिन हिंदी और उर्दू शिक्षा का माध्यम है। शादी-विवाह या अन्य मांगलिक अवसरों पर भोजपुरी संगीत कार्यक्रम का अभिन्न हिस्सा होता है।
कभी नील की खेती के लिए जाने जानावाला जिला अब अच्छी किस्म के चावल और गुड़, जर्दा आम, और मिर्चे की चिवड़े के लिए प्रसिद्ध है। अपरिचितों का स्वागत भी गुड़ और पानी से किया जाता है।।