बहुत ही दिलचस्प हैं माँ काली मंदिर का इतिहास!! जाने क्यूँ महत्पूर्ण हैं बेतिया का ये मंदिर.. जरुर पढ़े

By: Apna Bettiah

On: September 25, 2017

बेतिया: बेतिया राज द्वारा स्थापित बेतिया का दक्षिणेश्वर काली मंदिर की महिमा दूर-दूर तक फैली है। यह मंदिर शहर के पश्चिम हिस्से में स्थित है। बेतिया राज के लिखित स्त्रोत एवं चम्पारण गजेटियर के मुताबिक यह मंदिर तांत्रिक पद्धति से स्थापित की गई है। मंदिर के बीचोबीच एक तालाब है, जिसके चारों ओर कई देवी-देवताओं की प्रतिमा स्थापित हैं।
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मंदिर का इतिहास

इस मंदिर की स्थापना 1676 ई. में की गई थी। कहा जाता है कि भुवनेश्वर के बाद मंदिरो का शहर बेतिया है। जहां बेतिया राज के राजाओं ने कई देवी मंदिरों की स्थापना की थी। जिसमें सबसे प्रधान दक्षिणेश्वर काली मंदिर है। बाद में इसी के नाम पर कालीबाग मोहल्ला का नाम पड़ा है। शारदीय एवं चैत्र नवरात्र में यहां दूर दूर से साधक आकर देवी की उपासना करते हैं। मंदिर के एक दिशा में जहां चौसठ योगिनी की प्रतिमाएं है, तो दूसरी ओर दशों दिशाओं के स्वामी, जबकि एक दिशा में एकादश रुद्र और दूसरी ओर नवग्रह की प्रतिमाएं मुख्य रूप से स्थापित हैं। यहां भगवान के दशावतार मंदिर भी है। इतना ही नहीं चारों वेद एवं अष्टादश पुराण की प्रतिमाएं सर्व विदित है।

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मंदिर की विशेषताएं
मंदिर की मुख्य विशेषता यह है कि यहां हिन्दु धर्मशास्त्र में जितने देवी -देवताओं का वर्णन है, उसमें अधिकांश की प्रतिमाएं यहां स्थापित हैं। विशेष रूप से अष्ट भैरव एवं महाकाल भैरव, काल भैरव, माता तारा आदि की प्रतिमाएं भी हैं। यहां नेपाल नरेश के द्वारा दिए गए बड़ा घंटा विशेष पूजा के आयोजन पर बजाया जाता है।

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मंदिर के प्रधान पूजारी जयचन्द्र झा के अनुसार यह मंदिर तांत्रिक पद्धति से बेतिया राज के द्वारा स्थापित है। सच्चे मन जो भी भक्त यहां आकर आराधना करते हैं, मां उनकी मानोकामना पूरी करती हैं। शारदीय एवं चैत्र नवरात्र में बड़ी संख्या में साधक यहां आराधना करते हैं।
आचार्य उमेश त्रिपाठी के अनुसार यहां शारदीय एवं चैत्र नवरात्र में बड़ी संख्या में साधक यहां आराधना करते हैं। इस साल यहां काफी धूमधाम से मां दुर्गा की पूजा अर्चना की जाएगी। इसकी अभी से तैयारी आरंभ कर दी गई है।
आचार्य पं. राकेश मिश्र के अनुसार इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैली है। सच्चे मन जो भी भक्त यहां आकर आराधना करते हैं, मां उनकी मानोकामना पूरी करती हैं। भक्तों के लिए यह सबसे बड़ा धाम है। यहां मां की साक्षात कृपा भक्तों पर नजर आती है।
                              सामाजिक कार्यकर्ता विनय कुमार सिंह का कहना है कि शारदीय एवं चैत्र नवरात्र में यहां दूर दूर से साधक आकर देवी की उपासना करते हैं। जो भी भक्त यहां आकर आराधना करते हैं, मां उनकी मानोकामना पूरी करती हैं। मंदिर के चारों ओर कई देवी-देवताओं की प्रतिमा स्थापित हैं।
 बेतिया: माँ काली मंदिर बिहार के सबसे प्रशिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है।यहाँ का साफ-सुथरी वातावरण लोगो को अपनी तरफ आकर्षित करती है।विभिन्न त्योहारो जैसे- रामनवमी, दशहरा,महाशिवरात्रि तथा छठ पूजा के अवसरों पर हजारो संख्या में भक्तजन यहां पर पूजा करने जाते है।

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मंदिर के बीचो-बीच स्थित तालाब इसकी खूबसूरती को और बढ़ा देती है।हर संध्या यहाँ सैकड़ो लोगो का हुजूम लगा रहता है, काली बाग़ द्वार पर स्तिथ चापाकल की पानी काफी शुद्ध मानी जाती है।अगर किसी व्यक्ति को सभी देवी-देवताओ की प्रतिमाओ की पूजा करना है तो उन्हें काफी वक़्त बिताना पड़ेगा।

यह मंदिर 10 एकड़ में फैला हुआ है जिसमे 4 एकड़ मंदिर भवन है और बाकी 6 एकड़ मंदिर की ग्राउंड है।इस मंदिर की स्थापना 400 साल पहले लगभग 1614 ई॰ में शाही परिवार के महाराज हरिश्चन्द्र के द्वारा की गयी थी।इस मंदिर में मुख्य देवी माँ काली को मन जाता है।

काली मंदिर छोटे छोटे मंदिरो में 5 खंडो में विभाजित है।सभी खंडो में मुख्य देवी-देवताओ की प्रतिमाये है।
माँ काली की पवित्र स्थान दक्षिण में स्थित है जहाँ ” चतुर्भुजी माँ काली ” की प्रतिमा है।ऐसा कहा जाता है की दीयावो की स्थापना 108  नर-खोपड़ी पर की गयी थी।मंदिर की बायीं स्थान पर ”तारा माता” की प्रतिमा है और दायीं स्थान पर ”महाकाल भैरव” की प्रतिमा है।दीयां के बायीं ओर ”छिनमस्तिका” तथा ”त्रिपुरासुंदरी” की प्रतिमाएं है जबकि दायीं ओर ”महालक्ष्मी” तथा ”भुवनेश्वरी” की प्रतिमाएं है।

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पवित्र स्थान के बाहर बरामदा में ”गणेश” और ‘बटुक-भैरव” की प्रतिमाएं है।माँ काली, नव-दुर्गा, दस-महाविद्या, अष्ट-भैरव तथा काल-भैरव की मंदिरे जो मुख्य खण्ड का निर्माण करती है,जहाँ माँ काली की भव्य प्रतिमा है। ”माँ काली सेवा विवाह समिति” के अध्यक्ष ”बिहारी लाल साहू” के अनुसार ”दस-महाविद्या” मंदिर में 10 देवताओ की प्रतिमा है तथा ”नव-दुर्गा” मंदिर में माँ दुर्गा की 9 प्रतिमाएं है। माँ काली मंदिर की महत्व यह हैं की इसकी 56 भुजाये है तथा 5 मुख है।”चतुर्थ षष्ठ योगिनी” एवं ”महाकाली” मंदिर दूसरे खंड में आती है जिसमे 74 योद्धाओ की मुर्तिया है जिन्होंने माँ दुर्गा से युद्ध किया था।अष्ट माता(आदि शक्ति) की 8 प्रतिमाएं यही स्थित है।इस खंड की मुख्य मूर्ति ”उग्रतारा” है। तीसरे खंड की मंदिरो में ”दशावतार” मंदिर मुख्य मंदिर है जिसमे 24 देवी-देविताओ की प्रतिमाएं है जिनमे पंच-गंगा,विष्णु-गरुड़,विनायक गणेश के साथ रिद्धि-सिद्धि की प्रतिमाएं शामिल है, जिसमे मुख्य प्रतिमा ”राधा-कृष्ण” की है।इसी मंदिर में भगवान ”महामृत्युंजय महादेव” की आदर्श प्रतिमा है!


चौथे खंड में ”एकादशरुद्र”,”दशौदीर्घपाल”,”पतितपावनेश्वर महादेव” तथा ”पाशुपतिनाथ” की मंदिरे स्तिथ है।पाशुपतिनाथ मंदिर की प्रतिमा काठमांडू में स्थित पाशुपतिनाथ मंदिर की अनुकृति है।इस मंदिर की मुख्य प्रतिमा ”हरात्मक महादेव” की है। पांचवे खंड में ”द्वादश कला सूर्य नारायण”,”नौ ग्रह,”नौ महादशा” तथा ”श्याम कार्तिक महाराज” की मंदिर स्थित है।

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