बाढ़ के पानी से पूरा इलाका घिरा होने के कारण लाश जलाने को जगह ही नहीं मिल रही है। इसके लिए एनएच के किनारे जगह को लोगों ने चुना। अब तो एनएच या अन्य ऐसी जगह की तलाश हो रही है, जहां पर लाश को जलाया जा सके। चिता से धुआं निकल रहा था। लाश जल चुकी थी। चिता पर लकड़ी का अभाव दिख रहा था। इसे जलाने में टायर का भी इस्तेमाल किया गया था। वहां पर लोग भी नहीं थे। जिस जगह पर लाश को जलाया गया वहां अगल-बगल में गंदगी का ढेर लगा हुआ था। आखिर लाश जलाने के लिए इसी जगह का सहारा लेने की मजबूरी जो थी। हां इतना जरूर किया गया कि जिस जगह पर लाश को जलाया गया था वहां पर साफ मिट्टी दिख रही थी। अभी आने वाले समय में लाश जलाने के लिए एनएच का ही सहारा लेने की संभावना है।
बाढ़ के पानी से पूरा भाग डूबा होने से लकड़ी की भी समस्या बढ़ गई है। इससे लाश जलाने में टायर का उपयोग किया गया। बाढ़ के पानी का प्रभाव का दर्द अभी आने वाले काफी समय तक रहेगा।
अमूमन लाश जलाने के लिए मोतिहारी-लखौरा मार्ग स्थित बरनावा घाट का उपयोग किया जाता है, जो अभी पूरी तरह बाढ़ के पानी में डूबा है। बाढ़ का पानी कुंआरी देवी चौक से आगे अवधेश चौक तक लगा है। इसे पूरी तरह उतरने में कई दिन लगेंगे।