रामनवमी के अवसर पर पढ़े, कालिका माई और सोमेश्वर पहाड़ से जुड़े तथ्वों को।।

By: Apna Bettiah

On: April 5, 2017

रामनवमी के अवसर पर पढ़े, कालिका माई और सोमेश्वर पहाड़ से जुड़े तथ्वों को।। 1



बगहा: चंपारण ही नहीं पूरे पूरे बिहार में प्रसिद्ध कलिका माई स्थान सोमेश्वर की सबसे ऊंची चोटी पर माता विराजती है। सिद्ध पीठ के रूप में प्रसिद्ध इस स्थान पर चैत्र नवरात्रों में ही जाने का रास्ता खुलता है। एसएसबी की सुरक्षा व स्थानीय पूजा समितियों के सहयोग से अपने वाले भक्त श्रद्धालुओं को माता का दर्शन हो पाता है। इधर कुछ सालों में इस सिद्ध स्थल पर आने वाले भक्तों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। दूर्गम रास्ते पर करीब 2200 फीट की ऊंचाई पर माता का स्थान है। जहां से नेपाल का चितवन क्षेत्र साफ दिखता है। इस स्थान के बारे में कहा जाता है कि सोमेश्वर पहाड़ भगवान शंकर के नाम से रखा गया है। जहां चांद भी श्राप वश आकर इस स्थल पर पूजा पाठ व वास कर चुके है। साधक स्थल के रूप में प्रसिद्ध इस स्थान का साधक गुरू रसोगुरू व राजा भतृहरि से भी जोड़कर जाना जाता है। सत्तर के दशक में आम लोगों के पटल पर आए इस सिद्ध स्थल की लोकप्रियता लगातार बढ़ती जा रही है। कठिन चढ़ाई के बावजूद भी यहां आने वाले भक्तों की संख्या में दिनोंदिन इजाफा हो रहा है। हालांकि भारत व नेपाल की सीमा होने के कारण एसएसबी की सुरक्षा में भक्त श्रद्धालुओं का चैत्र के नवरात्रों में आना जाना हो पाता है। बाबा नरहिर दास के खोज के परिणाम इस स्थल को आम लोगों के नजर में लाया गया। परन्तु स्थानीय लोगों के पहल व नैसर्गिक सुंदरता से भरपूर इस पीठ को ना तो पर्यटन स्थल का दर्जा मिला और ना ही इस दर्शनीय स्थल तक पहुंचने के लिए सरकारी स्थर पर आज तक ऐसी पहल की गई। इसके बावजूद भी माता के इस दरबार में आने वाले भक्तों को कोई भी बाधा नहीं रोक पा रही है। बढ़ते संख्या के कारण अब स्थानीय लोगों के माध्यम से पूजा समिति बनाकरइस स्थल पर आने जाने वाले लोगों को सुविधा के साथ खाना पानी का इंतजाम किया जाता है|


इस माता के स्थल पर पूरे तो नहीं पर इससे ठीक नीचे भतृहरि कुटी पर पूरे चैत्र नवरात्रों में यहां महायज्ञ का आयोजन होता है। वर्षो से चली आ रही यह परंपरा आज भी निरंतर जारी है। इस कुटी पर भगवान शिव का मंदिर है। माता के दर्शन को जाने वाले भक्त श्रद्धालुओं का भगवान शिव के मंदिर में पूजा करना आवश्यक होता है।
सोमेश्वर की सबसे ऊंची चोटी पर स्थित माता कालिका के स्थान के बारे में कहा जाता है कि इस स्थल पर आने वाले पूरे साल तक स्वस्थ्य रहते है। वही यहां आने वाले भक्त श्रद्धालुओं की मन्नत माता अवश्य पूरी करती है। जिसकी मन्नत पूरी हो जाती है वह माता के दरबार में दुबारा मत्था टेकने जरूर आता है।

रामनवमी के अवसर पर पढ़े, कालिका माई और सोमेश्वर पहाड़ से जुड़े तथ्वों को।। 2


ये हैं दर्शनीय स्थल :

परेवा दह : यहां जाने वाले श्रद्धालु गोबर्धना रेंज कार्यालय से पैदल चलना शुरू करते है। उनका सबसे पहला पड़ाव व दशर्नीय स्थल परेवा दह का सामना होता है। इसके बारे में कहा जाता है कि यहां सैकड़ों कबूतरों का समूह निवास करता है। जिसके कारण इसका नाम परेवा दह पड़ा।
टाइटेनिक पहाड़ : नदी के स्त्रोती के बीच पहाड़ को काटकर नदी के धारा के द्वारा बनाया गये इस कलाकृति जो नाव के समान है। इसे टाइटेनिक के नाम से आम बोल चाल में जाना जाता है। यह भी दर्शनीय है।

संकरी गली : पहाड़ों के बीच से पतले रास्ते को जोड़ने हुए दो पहाड़ों को मिलाने वाले रास्ते को संकरी गली के नाम से जाना जाता है। जहां भक्त श्रद्धालु के लिए चना गुड़ का इंतजाम पूजा समिति व ग्रामीणों के सहयोग से उपलब्ध कराया जाता है।

भतृहरि कुटी : इस स्थल पर भगवान शिव का मंदिर, रसोगुरू का गुफा आदि दर्शनीय है। यहां समिति के यहां रात्रि विश्राम का भी इंतजाम किया जाता है। जिससे माता के दर्शन करके आने वाले व दर्शन को जाने वाले यात्री इस स्थान पर नाश्ता चाय कर थकान मिटा सकते है। साथ ही रात्रि में लंगर, भंडारा के साथ विश्राम की सुविधा भी इस कुटी पर रहती है।

रसोगुरू का गुफा : भतृहरि कुटी पर ही एक चट्टान में एक मनुष्य के रहने सोने की जगह वाला चट्टान है कहा जाता है कि रसोगुरू रात में इसी में सोते थे।

अमृत कुंड : माता के मंदिर के दूसरे तरफ नेपाल क्षेत्र में एक अमृत कुंड की धारा बहती रहती है। पतले सोती से भक्तों का प्यास यहां बुझता है। माता के मंदिर पर आसपास पानी की व्यवस्था नहीं रहने के कारण भारत व नेपाल के भक्त भी इसी जगह अपनी प्यास बुझाते है। कहा जाता है कि इस धारा में थुकने या पैर धोने से पानी का निकलना बंद हो जाता है। जिससे कोई साफ हृदय वाला व भक्त ही पुन: पूजा करके चालू करता है। उसके बाद फिर से पानी गिरने लगता है।

शेर गुफा : इस स्थल पर शेर की गुफा भी दर्शनीय है। जिसपर सदैव मक्खियां  भिनभिनाती रहती है। कहा जाता है कि रसोगुरू शेर की सवारी करते थे। जिनका शेर आज भी ¨जदा है जो इसी गुफा में निवास करता है। इसके अलावा भी इस स्थल से नेपाल के कई गांव, चितवन जंगल के साथ बहुत कुछ देखने को मिलता है। इसलिए कहा गया है कि इस प्रखंड के सिद्ध माता के दर्शन को एक बार अवश्य आएं।


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