बेकार पड़ी है 34 लाख की मशीन
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बावजूद इसके इसकी आपूर्ति में कंपनी को देने में 31 माह से भी अधिक का समय लग गया। उक्त आपूर्ति के साथ ही कंपनी को पूरा भुगतान कर दिया गया। इसके बाद कुछ हजार का डस्टवीन नहीं खरीदे जाने से 13 माह से यह शोभा की वस्तू बना पड़ा है। इसके बावत नप के कार्यपालक पदाधिकारी डा. विपिन कुमार ने बताया कि डस्टवीन खरीद के लिए ई. टेन्डरिंग के माध्यम से निविदा निकाली गई थी।
लेकिन दावेदारों के टर्नअप नहीं होने से कामयाबी नहीं मिल सकी है। बोर्ड की अगली बैठक में इस पर विचार कर सहज प्रक्रिया अपनाने को लेकर नप बोर्ड की सहमति प्राप्त करने की पहल होगी। इसको लेकर अनेको बार प्रयास के बावजूद सहमती नहीं बन पाने से कम्पेक्टर का उपयोग का रास्ता निकल नहीं पाया है। आठ टन कचरे को एक बार में खपाने वाले इस मशीन की उपयोग अब तक शुुरु नहीं किया जा सकना सही में दुखद है। अब इसकी पहल तेज की गयी है।