बगहा: कुदरत की अनोखी व सुंदर रचना में कुछ भी असंभव नहीं। तभी तो लोगों की आस्था विश्वास की डोर कभी ढीली नहीं हो पाती। कुछ ऐसा ही अद्भुत, अविश्मरणीय व अकल्पनीय दृश्य इस पेड़ की शाखाओं में दृष्टिगोचर हो रहे हैं। वहीं, मंदिर का रूप धारण कर चुके इस पेड़ के मध्य में शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं सदाशिव स्वयंभू महादेव। हम बात कर रहे हैं पश्चिम चंपारण के बगहा-दो प्रखंड के सेमरा थाना स्थित तड़वलिया धाम गांव की जो आज किसी तीर्थ से कम नहीं है। सैकड़ों वर्षों से सहेजे गए आस्था व विश्वास को आज भी यहां के लोग दिलोदिमाग से संजोए हुए हैं।
क्या है मान्यता…
55 वर्ष से पेड़ रुपी मंदिर के पुजारी 70 वर्षीय नंदलाल तिवारी गिरी ने बताया कि उनके पूर्वज बताते थे कि यह मंदिर सैकड़ों साल पुराना है। पूर्वजों ने बताया था कि यहां पहले जंगल था। जहां स्वयं ही एक शिवलिंग प्रकट हुआ। आस पास के लोगों ने जब देखा तो उनकी आस्था जगी और वे वहां एक मंदिर का निर्माण कराना आरंभ किया, लेकिन निर्माण के दौरान कई लोगों को स्वप्न आए कि शिव अपनी मंदिर का निर्माण स्वयं करेंगे। इसके बाद उस शिवलिंग के पास बरगद व पीपल के पेड़ आपस में गूंथते गए और उसकी अनेकानेक शाखाओं ने मंदिर का रूप धारण कर लिया। आज आलम यह है कि पेड़ रुपी इस मंदिर के अंदर जाने का एक छोटा रास्ता है जिसमें झुककर अंदर जाया जाता है वहीं अंदर में तीन चार लोग बैठकर आसानी से पूजा कर सकते हैं।
क्या है अद्भुत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय
मंदिर रूपी इस पेड़ की टहनियों व शाखाओं ने इतने रूप व आकृतियां बना ली हैं, जो वास्तव में अद्भुत, अकल्पनीय व अविश्मरणीय है। देखने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि किस प्रकार मंदिर रूपी इस पेड़ की टहनियों ने त्रिशूल, डमरु, धनुष, ओम, नाग-नागिन, भगवान श्रीगणेश आदि का स्वरूप धारण कर लिया है। ऐसा साथ शायद ही कही अन्यत्र देखने को शायद ही मिले। ग्रामीण सहित आस-पास के लोग इस गांव के आगे “धाम ” लगा रहे हैं।
नाग-नागिन के करते हैं परिक्रमा
पुजारी नंदलाल गिरी ने बताया कि प्रति सोमवार एवं शुक्रवार को यहां नाग देवता का प्रत्यक्ष दर्शन होता है। सावन की नागपंचमी को नाग-नागिन एक साथ मंदिर की परिक्रमा करते हैं, जिसे यहां के हजारों श्रद्धालुओं ने भी देखा है। उन्होंने बताया कि नाग-नागिन पेड़ रुपी मंदिर की पांच बार परिक्रमा करते हैं।
बेतिया महाराज ने भी दिया था दान
तड़वलिया धाम शिव मंदिर की एक कमिटी भी है। कमिटी के अध्यक्ष ब्रजभूषण यादव ने बताया कि इस मठ के महंथ गोविंदानंद हैं। वहीं, बाबा भवानीनाथ उर्फ अवघड़ बाबा की देखरेख में यहां सभी आयोजन किए जाते हैं। उन्होंने बताया कि यहां आसपास के लोगों ने बहुत सारी जमीनें इस मठ को दान दी है, जिसमें बेतिया महाराज की ओर से भी मठ को करीब दस बीघा जमीन दान दी गई है। जो इस बात की की पुष्टि कर रहा है कि मंदिर काफी पुराना है। क्योंकि बेतिया के अंतिम महाराज 18 सौ ई. में ही थे। समिति के सदस्यों में गोविंद यादव, नंदलाल यादव, जगदीश भगत सहित 11 लोग शामिल है।
हर रोज उमड़ता है आस्था का सैलाब
पुजारी सहित ग्रामीणों ने बताया कि इस अद्भुत भगवान के दर्शन को यूं तो हर रोज हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं, लेकिन सावन के सभी दिन तथा नवरात्र में इसका विशेष महत्व हो जाता है। उस समय यहां मेला का नजारा होता है। ग्रामीण बताते हैं कि जब से यहां गांव बसा है। भगवान शिव की कृपा से आजतक किसी ग्रामीण के साथ अनहोनी नहीं हुई। इसलिए भी लोगों का अटूट विश्वास भोलेनाथ व उनके द्वारा रचित पेड़ की टहनियों में अदभुत आकृतियों पर है।