डॉ. गोरख प्रसाद मस्ताना के कविता ‘चंपारण के माटी ‘
“बाल्मीकि मुनि महँ भइलें चंपारण के माटी में
रामायण के कथा सुनइले चंपारण के माटी में
नारायणी सदानीरा के बहेला अमृत धारा
देवल भा महजिद बा साथे संगही में गुरुद्वारा
भइयारी के बीज रोपाइले चंपारण के माटी में
रहे पुरनका जुग में इहवां चंपा फुल के जंगल
हवा हिमालय से आई के गावे गीत सुमंगल
देवतो लोग इहवां हरखइले चंपारण के माटी में
बसल हिमालय के गोदी में बा, इ धरती पवन
चरण बुद्ध के परल इहाँ भइली अउर सुपावन
महावीर तिरथंकर अइले, चंपारण के माटी में
इहें लौरिया में अशोक समराट के लट बा भारी
अरेराज में महादेव सोमेश्वर जी सुखकारी
गाँधी बाबा संत कहइहे, चंपारण के माटी में
सरेया मन के पानी रखेला के जिला के पानी
सवाद में मरचा के चिउरा के बा अजब कहानी
सभे खवइया खूब अघइहे चंपारण के माटी में
लोग इहाँ के सीधा- साधा सबकर मन करेले
अनकर जान बचावेला, उ आपन जन धरे लें
परमारथ के गीत रचइले, चंपारण के माटी में“
( साभार : चंपारण के गीत : संपादक : लव शर्मा प्रशांत)
( कवि परिचय: डॉ. गोरख प्रसाद मस्ताना जी जनम पश्चिमी चंपारण जिला के बेतिया नगर में एक फ़रवरी १९५४ में भईल रहे. वर्तमान के अपने बेतिया के राज इंटर कॉलेज में हिंदी के अध्यापक बनी. अपने अब ले बहुते सम्मान आ उपाधि मिल चुकल बा. ” जिनिगी पहाड़ हो गइल” इहाँ के भोजपुरी काव्य संग्रह बा. इह संग्रह पर अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मलेन के २३ वा अधिवेशन में आचार्य महेंद्र शास्त्री पुरस्कार मिलल बा. इहाँ के दिल्ली से प्रकाशित पत्रिका भोजपुरी जिनगी (जिंदगी) के प्रधान संपादक बनी.इहाँ के एगो सफल मंचीय कवि भी हई)
“चम्पारण की माटी” गोरख प्रशाद द्वारा लिखी गयी एक बेहतरीन कविता
By: Apna Bettiah
On: February 1, 2017