बेतिया राज की बर्बादी की कहानी छह दशक पहले उस दिन शुरू हो गई जब इस राज की अंतिम महारानी जानकी ने प्राण त्याग दिए। 27 नवंबर 1954 को इस राज का दीया हमेशा के लिए बुझ गया और इसी के साथ शुरू हो गयी बेतिया राज के बर्बादी की दास्तां।
इस राज की संपति और धरोहरों को नुकसान पहुंचाने में केवल बाहरी ही नही अपने भी बढ़-चढ़ कर भागीदार बनते रहे। कभी राज की भूमि को हड़पने की साजिश रची गई तो कभी राज के अंदर छुपे खजाने और अनमोल धरोहरों को चुराने की। जिस राज की ख्याति दूर दूर तक अपने प्रसिद्धि के लिए विख्यात रही वो ही आज अपनी बदहाली और बेबसी के लिए विख्यात होता जा रहा है। नब्बे के दशक से शुरू हुआ राज में चोरी का अंतहीन सिलसिला अब भी बदस्तूर जारी है। कितने पकड़े गए और कितने जेल से छूट गए लेकिन हर बार राज की निशानी पर हथौड़ा चलता रहा। बुधवार की रात जब ऐतिहासिक तोप पर हथौड़ा चलाया गया तो लोगों को लगने लगा कि खस्ताहाल की दहलीज पर खड़े बेतिया राज के बचे खुचे धरोहरों को बचा पाना भी अब मुश्किल है।
इतिहास को इतिहास बनाने की कवायद में खुद प्रशासन और बेतिया राज से जुड़े लोग ही लगे हैं। युवा पीढ़ी ये नही जानती कि राज परिसर में लगे तोपों की महता क्या है। झाड़ियों के बीच अपनी बदहाली का रोना रो रहे तोपों में से एक अब गायब हो चुका है। तोप के बारे में जानकारी मिल रही है कि राज प्रबंधन से जुड़े लोगों ने उसे सुरक्षित रख लिया है लेकिन इस सवाल पर कोई भी कुछ बोलने से इंकार कर रहा है। पुलिस चोरी का मामला नही मान रही और प्रशासनिक अधिकारी कहते हैं कि उन्हे इस बारे में कोई जानकारी नही। सवाल कई हैं जिसका जवाब न तो राज प्रबंधन के पास है और न ही प्रशासन के पास। एक एक कर इस राज के अमुल्य धरोहरों को चोर अपना निशाना बनाते रहे और समृद्ध इतिहास खोखला होता चला गया।
राज की कीमती धरोहरों का हाल बेहाल
बेतिया राज की कीमती भूमि के अलावा कई ऐसे एंटिक समान हैं जिन पर कतिपय लोगों की गिद्ध ²ष्टि लगी हुई है। 31 मई को जब तोप के चोरी करने के प्रयास की जानकारी यहां के लोगों को लगी तो चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया। चर्चाओं के अनुसार चोरों ने तोप को खोलने का प्रयास किया था जिसमें वे सफल नही हो सके। ऐसा इसलिए कि तोप खुले में है और रास्ता चालू। लेकिन, सवाल उठता रहा कि आखिर राज प्रबंधन से जुड़े लोग कहा थे कि तोप का स्तंभ टूट गया और इतिहास के पन्नों में अब दर्ज हो जाएगा कि बेतिया राज में कभी दो तोप हुआ करते थे जिसमें से एक न जाने कहां गायब हो गया। शीशमहल, राज कचहरी, राज कंपाउंड सभी का हाल बेहाल है। इसकी सुध लेने वाला कोई नही। एक अनुमान के अनुसार बेतिया राज की 46 सौ एकड़ भूमि पर अवैध कब्जा है। मामला कोर्ट में विचाराधीन होने की बात कही जाती है।
राज में चोरी के मामले
बेतिया राज में चोरी का सिलसिला नब्बे के दशक से शुरू हुआ। 1992 में राज के खजाने में रखे गए करीब दो करोड़ के अमूल्य हीरे जवाहारात की चोरी छत को काट कर की गई। बताया जाता है कि यह एशिया की सबसे बड़ी चोरी थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री ने चोरी की जांच सीबीआइ से कराने की घोषणा की थी लेकिन आज तक उसका कोई निष्कर्ष नही निकला।
2009 में राज के अभिलेखागार और राज कचहरी में लगी बेशकीमती घड़ी पर चोरों ने हाथ साफ कर लिया। दिसंबर 2016 में भी चोरों ने खजाने का छत काटने का प्रयास किया जिसमें आठ चोर रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिए गए। हर बार असामाजिक तत्व राज की अमूल्य धरोहरों पर हाथ साफ करने की जुगत करते रहे हैं लेकिन प्रशासन द्वारा इस ऐतिहासिक धरोहर को सहेज कर रखने की कोई ठोस व्यवस्था नही की जा सकी है।