रंग-बिरंगे कपड़ों से बैल और गाड़ी की सजावट लोगों को आकर्षित कर रही थी। 21वीं सदी में बैलगाड़ी पर बरात बच्चे, बुजुर्ग और नौजवानों के आकर्षण का केंद्र था। बरात जिधर से गुजरती थी, लोग देखते रह जाते थे। प्रबुद्धजन इसे पर्यावरण की सुरक्षा से जोड़कर देख रहे थे। प्रदूषणमुक्त वातावरण के लिए इसे अनूठी पहल भी बता रहे थे।
दुल्हन की सहेली ने कहा, मायानगरी जैसी बरात
बरात रक्सौल से करीब चार किलोमीटर दूर खेखरिया गणेश साह के दरवाजे पर पहुंची। वहां दुल्हन दीपमाला कुमारी की सहेली ने इसे मायानगरी की बरात क़रार दिया। बोली, यह तो फिल्मी दुनिया की बरात जैसी है। लोग चर्चा कर रहे थे कि इस चकाचौंध वाले समाज में बैलगाड़ी का ख्याल कैसे आया।
लड़के के मामा ने दिया विचार
लड़के के मामा मंजू साह ने बताया कि मुझे पुत्र नहीं है। मैंने सोचा कि भांजे की शादी को यादगार और सबसे अलग हटकर करूंगा। तब जाकर चकाचौंध से दूर पर्यावरण की सुरक्षा का ख्याल आया। फिर बैलगाड़ी का इंतजाम किया गया।
कहते हैं वर-वधु
वर अनिल सजना व वधू दीपमाला कुमारी ने बताया कि इस शादी की व्यवस्था मामा की सोच के अनुसार हुई। हम लोगों को पहले अटपटा लग रहा था।
डर रहे थे कि लग्जरी वाहन की जगह बैलगाड़ी से लोग बरात में नहीं जाएंगे। लेकिन मामा और पिता ने बताया कि इससे समाज और देश के लोग प्रेरित होंगे। आजकल केवल जीप, कार से लोग शादी करने जाते हैं। इससे बैलगाड़ी चलाने वाले किसान बेरोजगार होते जा रहे हैं। कम खर्च में सादगी से प्रेरणादायक और प्रशंसनीय शादी हुई।
स्रोत-दैनिक जागरण