बेतिया: 15 अप्रैल 1917 ई० को गाँधी जी मोतिहारी पहुचे। अंग्रेजो को उनका यहाँ आना अच्छा नहीं लगा और उनलोगो ने इसका विरोध भी किया और उनपर नयायालय में केस दर्ज कराया। गाँधी जी ने भी मोतिहारी के जिला पदाधिकारी के पास लिखा।आखिरकार 20 अप्रैल को सरकार ने उनके खिलाफ दर्ज हुई केस को ख़ारिज किया और उन्हें यहाँ के जिला कलेक्टर को आदेश दिया की गाँधीजी के जरुरत के लिए उनके साथ जाए ताकि उन्हें कोई दिक्कत न हों।” सत्याग्रह आन्दोलन ” की पहली जीत यही थी और हो भी क्यों ना।
क्योकि भारत की आज़ादी की पहली नीव चम्पारण में रखीं गयी थी और “सत्याग्रह आन्दोलन ” की शुरुवात चम्पारण के ही बेतिया से शुरू हूई थी। गाँधीजी ने बेतिया के भितिहरवा में कई दिन बिताये और यहाँ के सारे लोगो ने उनका साथ दिया और वही जगह पे आज भितिहरवा आश्रम है।
22 अप्रैल को गाँधीजी बेतिया पहुचे यहाँ उनका भव्य स्वागत हुवा हजारो की संख्या में लोग स्टेशन पे पहुचे थे जिनमे स्कूल के बच्चे, किसान , पास के गाँव से आये लोग थे।
गाँधीजी बेतिया के हजारीमल धर्मशाला में रुके जहाँ पे सभी आन्दोलनकारियो के साथ उनकी मीटिंग हुई।उसके बाद उनके साथ राजकुमार शुक्ला और वकील ब्रज किशोर प्रसाद जुड़े। फिर वे लौकरिया के लिए निकले उसके बाद वे रामनवमी प्रसाद के साथ सिंगाछापर गए। 27 अप्रैल को वे नरकटिया गंज गए। अगले दिन वे लोग पैदल साठी न्यायालय पहुचे।उसके बाद वे मोतिहारी पहुचे और उन्हें तुर्कौलिया के ओलहन कोठी के आग लगने के बारे में मालूम हूई और उन्होंने अपनी जाँच की सुचना पटना नयायालय में पहुचाई।फिर वो बेतिया लौट आए
16 अप्रैल को गाँधीजी के साथ राजेंद्र प्रसाद, जे.बी. कृपलानी,प्रभुदास और राजकुमार शुक्ला पैदल सुगौली के लिए निकले।जहा उन्होंने लालगढ़ और धोकराहा का जायजा लिया।
लोहारिया नील उद्योग के बिल्डिंग में आग लगने के कारण बहुत नुकसान हुआ था।गांधीजी ने इसके लिए जिला पदाधिकारी को जिम्मेदार ठहराया और किसानो के लिए एक पत्र भी लिखा।
गाँधीजी उसके बाद अहमदाबाद, राँची और पटना गए और इस आन्दोलन को देश के कोने कोने तक पहुचाया।
उस समय चम्पारण में नील की खेती होती थी और यहाँ 60 नील फैक्ट्री थी और भारत में नील की सबसे ज्यादा पैदावार यही होती थी।लेकिन इस उद्योग से किसानो को कोई फायदा नही होती थी वे लोग किसानो के साथ दुर्वयवहार भी करते थे।
8 जून 1917 को गाँधी जी फिर बेतिया लौट आए और उन्होंने जाँच समिति का गठन किया जिसमे कुल सात सदस्य थे।
गांधीजी इस समिति के सदस्य पहले थे।और उन्होंने इस जाँच के दौरान 850 गाँवों का भ्रमण किया और 8000 किसानो का विवरण लिया जो 60 नील फैक्ट्री के विरुद्ध थे।15 जुलाई को जाँच समिति के सभी सदस्य बेतिया पहुचे जिनमे श्रीमती कस्तूरबा,डॉ० राजेंद्र प्रसाद, डॉ० देव,ब्रजकिशोर प्रसाद, धर्निधर प्रसाद,अनुग्रह नारायण सिंह, देवदास गाँधी, जे०बी० कृपलानी, प्रभुदास और रामनवमी प्रसाद शामिल थे।
ये खबर पुरे भारत के अख़बार में प्रकाशित हुई और 16 जुलाई 1917 को बेतिया के हजारीमल धर्मशाला के सामने 10000 से ज्यादा किसान और कर्मचारी एकत्रित हुए ।
अगले दिन देश के सभी पत्रकार राज स्कूल के हॉस्टल में एकत्रित हुए और उन्होंने सभी किसानो और कर्मचारी की शिकायत को दर्ज किया।
इस सभी यात्रा के दौरान गांधीजी और जाँच समिति के सदस्यों ने चम्पारण के सभी किसानो की शिकायत को दर्ज कराया।
6 अक्टूबर को गवर्नर ने जाँच समिति की शिकायत विवरण को स्वीकार किया और गांधीजी ने बेतिया में गौशाला की नीव रखी।
आखिरकार 18 अक्टूबर 1917 को सरकार ने चम्पारण जाँच समिति और उनकी शिफारिश को स्वीकार किया और अपनी विचार को भी सबके सामने रखा।
और यह पहली शांतिपूर्ण आन्दोलन(सत्याग्रह आन्दोलन) की जीत थी जिसे महात्मा गांधीजी ने बेतिया,चम्पारण में शुरू की थी।इस दौरान गाँधीजी ने तीन स्कूल की स्थापना की।
पहली स्कूल बरहरवा जो ढाका, मोतिहारी के पास स्तिथ है, दूसरी स्कूल की स्थापना की जो भितिहरवा में है और तीसरी स्कूल की स्थापना की जो मधुबन में है।
आखिरकार 1 मई 1918 को गवर्नर ने 60 नील फैक्ट्री को पूर्ण रूप से बंद किया जो ” नील का अभिशाप ” नाम से प्रसिद्ध है।
24 मई 1918 ई० को गाँधी जी ने चम्पारण में आश्रम की नीव रखी और अहमदाबाद चले गए। आज़ादी की पहली आन्दोलन की शुरुवात हमारे चम्पारण से हुई।
गाँधी जी के चम्पारण सत्याग्रह पूरी दास्ताँ
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