बेतिया। वो कौन थी, चनपटिया के यादोछापर में खुद आई थी या वहां जबरन लाया गया था। घटना को करीब एक माह रोने वाला है लेकिन रहस्य अभी बरकरार है। चनपटिया थाना क्षेत्र के यादोछापर गांव के सरेह में विगत 17 दिसंबर को मिली अज्ञात महिला की लाश के बारे में कुछ कह पाने की स्थिति में पुलिस भी नहीं है। जिस प्रकार महिला की वीभत्स तरीके से हत्या की गई थी उससे लगता है कि अपराधी काफी खतरनाक थे। महिला की धारदार हथियार से गला काट दिया गया। सिर और शरीर के अन्य अंग अलग अलग पड़े थे। संयोग था कि ग्रामीणों ने चार पांच दिन के बाद लाश देख लिया वरना लाश को जानवर खा गए होते और इस बारे में कोई सोचने वाला भी नहीं मिलता। घटना के करीब एक माह के होने को है और अब यह मामला लोगों के जेहन से विसरता जा रहा है। पुलिस अपना कोरम पूरा कर अन्य कामो में जुट चुकी है। इंतजार होगा। उन्हें क्या पता जिसके लिए वे टकटकी लगाए है वो कभी लौटने वाली नहीं।
जिले में रहस्यमय है अज्ञात लाशों का राज
बेतिया पुलिस जिला अज्ञात लाशों के बरामदी को लेकर सूबे में सुर्खियों में है। या यू कहे की लाशों को ठीकाने लगाने के लिए पश्चिम चम्पारण अपराधियों के लिए सेफ जोन बनता जा रहा है। मामले में पुलिसिया कार्रवाई कागजी कोरम तक ही दिखती है। विगत एक वर्ष की बात करे तो जिले में जितने भी अज्ञात शव बरामद किए गए है उनमें से नाम मात्र के ही मामलों का उद्भेदन हो सकता है। बरामद लाश किसकी थी। हत्या किसने और किस नियत से की। हत्यारे कौन थे। लाशों को यहां क्यों फेंका गया अभी यह अबूझ पहेली ही बनी हुई है। जबकि इस कड़ी का बढ़ता दायरा लोगों को अचंभित भी कर रहा है। मामले में पुलिस प्राथमिकी दर्ज कर दो चार दिनों तक भाग दौड़ जरूर करतीू है लेकिन समय बीतने के साथ-साथ ही ये मामले फाइलों तक सिमट कर रह जाती है। हालांकि इस बाबत अधिकतर थानाध्यक्षों का जवाब होता है कि मामलों की जांच की जा रही है, लेकिन आमलोगों के साथ-साथ पुलिस को भी पता है कि जांच हो रही है या महज बयानबाजी से ही काम चलाया जा रहा है।
डेड बॉडी आब्जर्वेशन नियमावली से आमलोग अवगत नहीं
अव्वल तो यह है कि डेडबॉडी आब्जर्वेशन नियमावली से आम जनता अवगत नहीं है। इस मामले में जागरूकता के लिए कोई कार्यक्रम भी आयोजित नहीं किया जाता। इस मामले में जिले की पुलिस हमेशा उलझाने वाला बयान देकर ही बच जाती है। लेकिन इतना तो जरूर है कि लाशों से जुड़े परिजन जहां कहीं भी हो वो जरूर परेशान हो रहे होंगे। रिोचक पहलू यह भी है कि जिले में मानवाधिकार से जुड़े कई चेहरे आए दिन सुर्खियों में रहते है लेकिन अज्ञात लाशों के बारे में पुलिस की ठंडी कार्रवाई के बारे में ये संगठन कभी मुखर नहीं होते। बहरहाल अज्ञात लाशों का मामला एक ओर जहां पुलिस निष्क्रियता को दर्शाता है वहीं दूसरी ओर जिले के संवेदनहीन संगठनों पर भी आंशिक रूप से उनके चेहरे को उजागर करता है।